ये साल भी उदासियाँ दे कर चला गया
तुमसे मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया
..................................
"सीख कर गया वो मुहब्बत मुझसे..
अब जिस से भी करेगा बेमिसाल करेगा.”
....................................
जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना,
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना...
......................
मुझे भी शामिल करो, गुनहगारों की महफ़िल में,,,,
मैं भी क़ातिल हूँ, मैंने भी अपनी ख्वाहिशों को मारा है,,,।।
............................
ड़ी अजीब है ये मोहब्बत भी , मुक्कमल हो तो जिक्र भी नहीं,
अधूरी हो तो दास्ता बन जाती हैं
................................
जब कुछ नहीं रहा पास तो रख ली तन्हाई संभाल कर मैंने,
ये वो सल्तनत है जिसके बादशाह भी हम, वज़ीर भी हम, फकीर भी हम..
......................
अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को,
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे
....................
दे गया.....
ख़ामोशी बहुत
यूँ.......बिछड़ कर जाना
तेरा.....
इस से तो बेहतर...
........था.....
ज़िन्दगी में ना.........
आना तेरा........
............................................
वक़्त ओर हालात रिश्ते बदल
देते हैं,
अब तेरा जिक़र होने पर हम बात
बदल देते हैं...
...........................
हम वो हैं जो ख़ुद को भूल गए,
तुम मेरी जान किस गुमान में हो...
............................
जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं,
ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से...
........................
मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता
...................
भुला देंगे तुमको भी ज़रा सबर तो करो,
नस नस में बसे हो, थोड़ा वक़्त तो लगेगा...
.....................
एक सुकून की तलाश मे जाने कितनी बेचैनियां पाल ली,
और लोग कहते है हम बडे हो गए हमने जिंदगी संभाल ली.
..................
देखी थी दरार आज आईने में,
पता नही आइना टूटा था या मैं...
....................
ग़र ज़िन्दगी में मिल गये फिर इत्तेफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम
....................................
हिसाब-किताब हम से न पूछ
अब, ऐ-ज़िन्दगी..
तूने सितम नही गिने,
तो हम ने भी ज़ख्म नही गिने...!
........................
कमाल की मोहब्बत की तुमने
जान जान कहते कहते अनजान बना दिया।
.............................
आ तेरे पैरों पे मरहम लगा दूँ ऐ मुकद्दर...
कुछ चोट तुझे भी आई होगी, मेरे सपनो को ठोकर मारने के बाद…
....................
आप साल बदलता
देख रहे है,,,
मैने साल भर
लोगों को बदलते देखा है...
.........................
मत खोलना
जिंदगी की
पुरानी किताब को
जो था वो मैं रहा नहीं
जो हूँ वो
किसी को पता नहीं
..........................
तनहाइयों से इस क़दर मोहब्बत हो गयी हमें कि,
अपना साया भी साथ हो तो भीड़ सी लगती है...
......................
खो देते हैं, फिर खोजा करते हैं,
यही खेल हम जिन्दगी भर खेला करते हैं..
...........................
बहुत करीब से अंजान बनके गुज़रे है वो,
जो बहुत दूर से, पहचान लिया करते थे...!
...................
कितनी मुश्किल के बाद टूटा है,
इक रिश्ता कभी जो था ही नहीं
.......................
दो ही गवाह थे मेरी मोहब्बत के
एक वक्त और एक वो,
एक गुज़र गया
दूसरा मुकर गया।
.......................
dard halka hai saans bhaari hai
Jiye jaane ki rasm jaari hai
.....................................
रोज़ ख्वाबों में जीता हूँ वो ज़िन्दगी …!!!
जो तेरे साथ मैंने हक़ीक़त में सोची थी...!!
....................
हम तो यूं अपनी ज़िन्दगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले।
.....................
उसके बिना ज़िंदा रहना भी जैसे कोई होशियारी है
मजबूरियां का वास्ता था और बाकी ज़िम्मेदारी है।
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तुमसे मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया
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"सीख कर गया वो मुहब्बत मुझसे..
अब जिस से भी करेगा बेमिसाल करेगा.”
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जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना,
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना...
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मुझे भी शामिल करो, गुनहगारों की महफ़िल में,,,,
मैं भी क़ातिल हूँ, मैंने भी अपनी ख्वाहिशों को मारा है,,,।।
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ड़ी अजीब है ये मोहब्बत भी , मुक्कमल हो तो जिक्र भी नहीं,
अधूरी हो तो दास्ता बन जाती हैं
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जब कुछ नहीं रहा पास तो रख ली तन्हाई संभाल कर मैंने,
ये वो सल्तनत है जिसके बादशाह भी हम, वज़ीर भी हम, फकीर भी हम..
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अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को,
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे
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दे गया.....
ख़ामोशी बहुत
यूँ.......बिछड़ कर जाना
तेरा.....
इस से तो बेहतर...
........था.....
ज़िन्दगी में ना.........
आना तेरा........
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वक़्त ओर हालात रिश्ते बदल
देते हैं,
अब तेरा जिक़र होने पर हम बात
बदल देते हैं...
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हम वो हैं जो ख़ुद को भूल गए,
तुम मेरी जान किस गुमान में हो...
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जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं,
ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से...
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मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता
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भुला देंगे तुमको भी ज़रा सबर तो करो,
नस नस में बसे हो, थोड़ा वक़्त तो लगेगा...
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एक सुकून की तलाश मे जाने कितनी बेचैनियां पाल ली,
और लोग कहते है हम बडे हो गए हमने जिंदगी संभाल ली.
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देखी थी दरार आज आईने में,
पता नही आइना टूटा था या मैं...
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ग़र ज़िन्दगी में मिल गये फिर इत्तेफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम
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हिसाब-किताब हम से न पूछ
अब, ऐ-ज़िन्दगी..
तूने सितम नही गिने,
तो हम ने भी ज़ख्म नही गिने...!
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कमाल की मोहब्बत की तुमने
जान जान कहते कहते अनजान बना दिया।
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आ तेरे पैरों पे मरहम लगा दूँ ऐ मुकद्दर...
कुछ चोट तुझे भी आई होगी, मेरे सपनो को ठोकर मारने के बाद…
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आप साल बदलता
देख रहे है,,,
मैने साल भर
लोगों को बदलते देखा है...
.........................
मत खोलना
जिंदगी की
पुरानी किताब को
जो था वो मैं रहा नहीं
जो हूँ वो
किसी को पता नहीं
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तनहाइयों से इस क़दर मोहब्बत हो गयी हमें कि,
अपना साया भी साथ हो तो भीड़ सी लगती है...
......................
खो देते हैं, फिर खोजा करते हैं,
यही खेल हम जिन्दगी भर खेला करते हैं..
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बहुत करीब से अंजान बनके गुज़रे है वो,
जो बहुत दूर से, पहचान लिया करते थे...!
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कितनी मुश्किल के बाद टूटा है,
इक रिश्ता कभी जो था ही नहीं
.......................
दो ही गवाह थे मेरी मोहब्बत के
एक वक्त और एक वो,
एक गुज़र गया
दूसरा मुकर गया।
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dard halka hai saans bhaari hai
Jiye jaane ki rasm jaari hai
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रोज़ ख्वाबों में जीता हूँ वो ज़िन्दगी …!!!
जो तेरे साथ मैंने हक़ीक़त में सोची थी...!!
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हम तो यूं अपनी ज़िन्दगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले।
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उसके बिना ज़िंदा रहना भी जैसे कोई होशियारी है
मजबूरियां का वास्ता था और बाकी ज़िम्मेदारी है।
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