Thursday, January 03, 2019

तुमसे मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया

ये साल भी उदासियाँ दे कर चला गया
तुमसे मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया

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"सीख कर गया वो मुहब्बत मुझसे..
अब जिस से भी करेगा बेमिसाल करेगा.”

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जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना,
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना...

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मुझे भी शामिल करो, गुनहगारों की महफ़िल में,,,,
मैं भी क़ातिल हूँ,  मैंने भी अपनी ख्वाहिशों को मारा है,,,।।

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ड़ी अजीब है ये मोहब्बत भी , मुक्कमल हो तो जिक्र भी नहीं,
अधूरी हो तो दास्ता बन जाती हैं

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जब कुछ नहीं रहा पास तो रख ली तन्हाई संभाल कर मैंने,
ये वो सल्तनत है जिसके बादशाह भी हम, वज़ीर भी हम, फकीर भी हम..

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अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को,
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे

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दे गया.....
ख़ामोशी बहुत
यूँ.......बिछड़ कर जाना
        तेरा.....

इस से तो बेहतर...
      ........था.....
ज़िन्दगी में ना.........
आना तेरा........


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वक़्त ओर हालात रिश्ते बदल
देते हैं,

अब तेरा जिक़र होने पर हम बात
बदल देते हैं...

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हम वो हैं जो ख़ुद को भूल गए,

तुम मेरी जान किस गुमान में हो...


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जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं,
ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से...

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मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता

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भुला देंगे तुमको भी ज़रा सबर तो करो,

नस नस में बसे हो, थोड़ा वक़्त तो लगेगा...

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एक सुकून की तलाश मे जाने कितनी बेचैनियां पाल ली,
और लोग कहते है हम बडे हो गए हमने जिंदगी संभाल ली.

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देखी थी दरार आज आईने में,
पता नही आइना टूटा था या मैं...

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ग़र ज़िन्दगी में मिल गये फिर इत्तेफाक से

पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम

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हिसाब-किताब हम से न पूछ
अब, ऐ-ज़िन्दगी..

तूने सितम नही गिने,
तो हम ने भी ज़ख्म नही गिने...!

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कमाल की मोहब्बत की तुमने
जान जान कहते कहते अनजान बना दिया।


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आ तेरे पैरों पे मरहम लगा दूँ ऐ मुकद्दर...
कुछ चोट तुझे भी आई होगी, मेरे सपनो को ठोकर मारने के बाद…

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आप साल बदलता
देख रहे है,,,

मैने साल भर
लोगों को बदलते देखा है...

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मत खोलना
जिंदगी की
पुरानी किताब को

जो था वो मैं रहा नहीं
जो हूँ वो
किसी को पता नहीं

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तनहाइयों से इस क़दर मोहब्बत हो गयी हमें कि,

अपना साया भी साथ हो तो भीड़ सी लगती है...

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खो देते हैं, फिर खोजा करते हैं,

यही खेल हम जिन्दगी भर खेला करते हैं..

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बहुत करीब से अंजान बनके गुज़रे है वो,

जो बहुत दूर से, पहचान लिया  करते थे...!

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कितनी मुश्किल के बाद टूटा है,

इक रिश्ता कभी जो था ही नहीं

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दो ही गवाह थे मेरी मोहब्बत के
एक वक्त और एक वो,

एक गुज़र गया
दूसरा मुकर गया।

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dard halka hai saans bhaari hai
Jiye jaane ki rasm jaari hai

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रोज़ ख्वाबों में जीता हूँ वो ज़िन्दगी …!!!
जो तेरे साथ मैंने हक़ीक़त में सोची थी...!!

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हम तो यूं अपनी ज़िन्दगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले।

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उसके बिना ज़िंदा रहना भी जैसे कोई होशियारी है
मजबूरियां का वास्ता था और बाकी ज़िम्मेदारी है।

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