कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
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इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम,
कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
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निकाल डालिए दिल से हमारी यादों को,
यक़ीन कीजिए हम में वो बात ही ना रही...
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ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा,
वक़्त के साथ ज़माना भी बदल जाएगा...
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उसी का ईमाँ बदल गया है,
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
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जादू है या तिलिस्म तुम्हारी जुबान में,
तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था...
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रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया,
वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया ...
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मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया,
उसको भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता...
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यही थी उम्र उदासी का लुत्फ लेने की,
गुज़र रही है जो बेकार मुस्कुराने में..
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हम थे तुम थे और कुछ जज़्बात भी तो थे,
ख़ैर छोड़ो कुछ नहीं अल्फ़ाज़ ही तो थे ...
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वही फिर मुझे याद आने लगे हैं,
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं।
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गुमान नहीं है यक़ीन है, मेरा यक़ीन करो,
कोई किसी का नहीं है मेरा यक़ीन करो...
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कलेजे में हज़ारों दाग़ दिल में हसरतें लाखों,
कमाई ले चला हूँ साथ अपने ज़िंदगी भर की
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हसरतें दफ़्न हैं मुझ में,
ख़ुद की ख़ुद मज़ार हूँ मैं
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मैं हूँ दिल है तन्हाई है,
तुम भी होते अच्छा होता
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वो नदी थी वापिस मूडी नहीं,
हम भी समंदर थे आगे बढ़े नहीं...
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कितनी मुश्किल से मुस्कुराया था,
फिर किसी ने मिज़ाज पूछ लिया...